Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2024

137. प्रभु का नाम लेना कितना कल्याणकारी होता है ?

प्रभु का नाम जीवन में लेना जीवन के लिए बहुत ही कल्याणकारी होता है । इससे कल्याणकारी साधन कलियुग में अन्य कोई नहीं है । हर युग के अपने साधन होते हैं पर कलियुग के दोषों को देखते हुए इसमें साधन बड़ा सरल और सुलभ रखा गया है और वह है प्रभु नाम का जप । जो कल्याण अन्य युगों में बड़े-बड़े साधनों से संभव होता था वह कलियुग में केवल और केवल प्रभु नाम जप से सुलभ हो जाता हैं ।

136. प्रभु का नाम लेते-लेते मृत्यु हुई तो क्या होगा ?

प्रभु का नाम लेते-लेते मृत्यु हुई तो उद्धार निश्चित है । सभी श्रीग्रंथ और शास्त्र एकमत हैं और सभी संतों और भक्तों ने एकमत होकर कहा है कि अंतिम बेला पर प्रभु का नाम स्मरण हो गया तो फिर दोबारा किसी भी माता के गर्भ में कभी भी नहीं जाना पड़ेगा । पर ऐसा तभी संभव है जब प्रभु नाम जप का जीवन भर अभ्यास किया जाए तभी अंतिम अवस्था में ऐसा संभव होगा ।

135. सबसे बड़ी कमाई क्या है ?

जहाँ भी जाए प्रभु का नाम जपते हुए जाना चाहिए । प्रभु के नाम का साथ जीवन में कभी नहीं छूटे । संत और भक्त इसका विशेष ध्यान रखते है कि किसी भी अवस्था में उनका नाम जप छूटे नहीं और अखंड रूप से मन-ही-मन चलता रहे । संत और भक्त जहाँ भी जाते है और जो भी करते हैं उनका नाम जप चलता रहता है । यही उनके जीवन की सबसे बड़ी कमाई होती है ।

134. प्रभु नाम जप को संतों ने क्या उपाधि दी है ?

प्रभु नाम के जप को संतों ने विजय मंत्र कहा है । जिसको भी जीवन के किसी क्षेत्र   में विजय की आकांक्षा है उन्हें निश्चित तौर पर प्रभु का नाम जप करना चाहिए । नाम जप से सब कुछ सुलभ हो जाता है और कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता । नाम जप के चमत्कार से श्रीग्रंथ भरे पड़े हैं । नाम जप से सब कुछ संभव है इसलिए ही नाम जप को संतों ने विजय मंत्र की उपाधि दी है ।  

133. कलियुग का श्रेष्ठतम साधन क्या है ?

संतों और भक्तों का एकमत है कि प्रभु का नाम संकीर्तन ही कलियुग के लिए श्रेष्‍ठतम साधन है । इसमें कोई दो मत नहीं कि कलियुग का प्रधान साधन प्रभु नाम जप और नाम का संकीर्तन है । ऐसा इसलिए कि यह बात सभी शास्त्रों और श्रीग्रंथों में प्रतिपादित है और सभी भक्तों और संतों का यह व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है ।

132. प्रभु नाम को संतों और भक्तों ने कैसा पाया है ?

जिन संतों और भक्तों ने प्रभु के नाम रस का कीर्तन किया उन्होंने पाया कि वह मीठा-ही-मीठा है , उससे मीठा और कुछ भी नहीं है । सभी संतों और भक्तों का यह एकमत है चाहे वे कोई भी पंथ के क्यों न हो । प्रभु नाम का जप कलियुग का प्रधान साधन है इसलिए वह सबको अति मीठा लगा है और सभी ने प्रभु प्रेम में अवरुद्ध कंठ से नाम जप किया है और इसकी महिमा गाई है ।

131. कलियुग में प्रभु को प्राप्त करने का सबसे प्रिय साधन कौन-सा है ?

कलियुग में नाम जप और संकीर्तन से ही मुक्ति मिलती है । इसलिए प्रभु के नाम , रूप , श्रीलीला और धाम का कीर्तन करना चाहिए । बार-बार प्रभु का नाम जुबान से निकले वही श्रेष्ठ कीर्तन है । जीवन में बार-बार प्रभु नाम का संकीर्तन होते रहना चाहिए । यह कलियुग में प्रभु को प्राप्त करने का सबसे प्रिय साधन है ।

130. संसार का अमूल्य खजाना क्या है ?

प्रभु नाम जप संसार का सबसे अमूल्य खजाना है । हमने अपनी देह का उपयोग व्यर्थ काम के लिए किया और प्रभु नाम रूपी अमूल्य खजाना पाने का अवसर खो दिया । यह हमारा कितना बड़ा दुर्भाग्य होता है कि हम संसार के व्यर्थ की दुनियादारी में अपना बहुमूल्य समय व्यतीत कर देते है जो समय हमें नाम जप में लगाना चाहिए था । ऐसा करके हम संसार से प्रभु नाम रूपी अमूल्य खजाना लिए बिना खाली हाथ प्रभु के समक्ष वापस जाते हैं ।

129. कलियुग में सबसे ऊँ‍चा क्या साधन है ?

प्रभु के नाम जप और सत्संग रूपी भगवत् चर्चा से ऊँ‍चा कलियुग में कुछ भी नहीं है । इसमें भी नाम जप की प्रधानता कलियुग में है । सत्संग भी हमें नाम जप की ही प्रेरणा देता है और नाम जप से भक्तों ने क्या पाया है वह बताता है । नाम जप से कलियुग में सब कुछ सुलभ है इसलिए ही सत्संग में भी नाम जप की ही महिमा गाई गई है ।

128. संतों और भक्तों की दिनचर्या क्या होती है ?

संतों और भक्तों का एक-एक क्षण प्रभु चिंतन और प्रभु नाम लेने में जाता है । यही उनकी प्रधान दिनचर्या होती है । वे एक भी क्षण प्रभु चिंतन और प्रभु नाम जप बिना नहीं जाने देते । उनकी श्‍वास-श्‍वास पर प्रभु का नाम चलता है । पूरा जीवन वे प्रभु नाम धन कमाने में बिता देते हैं और संसार से मालामाल होकर प्रभु के धाम जाते हैं ।

127. भक्त का नाम प्रभु को कितना प्रिय हैं ?

प्रभु अपने भक्तों के लिए यहाँ तक कहते हैं कि भगवती शबरीजी और श्री सुदामाजी का नाम लेकर भी मुझे जो भोग लगाएगा तो भाव नहीं होने पर भी सिर्फ भगवती शबरीजी और श्री सुदामाजी का नाम लेने के कारण मैं उसे स्वीकार करूंगा । भक्तों को इतना मान प्रभु देते हैं । जैसे भक्त प्रभु का नाम लेने में आनंद मानते हैं वैसे ही प्रभु भी अपने प्रिय भक्तों का नाम सुनने में परम आनंद मानते हैं ।

126. नाम जप बिना मन से होने पर भी क्या वह हमारा कल्याण करेगा ?

प्रभु का नाम मन से लें या बेमन से लें पर वह हमारा निश्चित कल्याण करके ही रहेगा । नाम जप कैसे भी करें वह हमारा मंगल करता ही है । कलियुग में अन्य साधनों में मन लगाना बहुत कठिन है इसलिए नाम जप में कोई भी नियम नहीं लगाया गया है । कैसे भी प्रभु का नाम जप हो जाए वह हमारा उद्धार करके ही रहेगा ।

125. नाम जप की परिपक्व अवस्था क्या होती है ?

नाम जप के बाद मानसिक सुमिरन यानी प्रभु का चिंतन करना चाहिए । यही नाम जप की परिपक्व अवस्था होती है । नाम जप से नामी प्रभु के चिंतन तक की यात्रा हमें करनी है और जैसे ही हम यह करने में सफल हो जाते हैं हमारा पूर्ण कल्याण संभव हो जाता है । जिह्वा को नाम जप का काम दे दें और मन को प्रभु के चिंतन   का काम दे दें ।

124. कार्य करते वक्त नाम जप कैसे करें ?

हाथ से संसार का काम करें और जुबां से प्रभु का नाम जपें । यह कितना सरल है कि नाम जप करने के लिए हाथ को काम छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है । हाथों को काम में लगा दें और जिह्वा को नाम जप का काम दे दें तो काम करते वक्त भी भजन और भक्ति होती रहेगी ।

123. श्रीराम नाम की महिमा क्या है ?

प्रभु श्री महादेवजी श्री काशीजी में जीव के कान में श्रीराम नाम कहकर उस जीव को मुक्ति दे देते हैं । श्रीराम नाम की इतनी महिमा है कि प्रभु श्री महादेवजी द्वारा श्री काशीजी में जीव के कान में श्रीराम नाम कहने पर उस जीव को सभी पापों से क्षणभर में मुक्ति मिल जाती है । श्रीराम नाम सहस्त्रतुल्य नाम है ।

122. जीवन के कार्यों को कैसे करते रहना चाहिए ?

प्रभु नाम का चिंतन और प्रभु नाम का जप करते हुए हमें अपने जीवन के कार्यों को करते रहना चाहिए । कलियुग में इतना करने मात्र से प्रभु प्राप्ति संभव है । हम अपना कार्य करते हुए प्रभु नाम का चिंतन और प्रभु नाम का जप करते है तो वह कार्य भी पूजन हो जाता है और प्रभु प्राप्ति करवा देता है । श्रीगोपीजन ने संसार का सारा काम किया पर प्रभु नाम का चिंतन और प्रभु नाम का जप भी साथ में किया और इस कारण प्रभु की अत्यंत प्रिय हो गई । उन्हें प्रेमाभक्ति की ध्वजा कहा गया है ।  

121. जीवन में क्या एक चीज करनी चाहिए ?

कलियुग में जीवन में प्रभु नाम का जप और प्रभु नाम का कीर्तन करना ही चाहिए । इसके अलावा हम जो साधन कर सकें सो ठीक, नहीं कर सकें तो भी नाम जप और नाम कीर्तन ही हमारा मंगल, कल्याण और उद्धार करने में पूर्णतया समर्थ हैं । कलियुग बड़ा कठिन युग है इसलिए प्रभु प्राप्ति और मंगल का साधन सबसे सरल रखा गया है और वह है नाम जप और नाम कीर्तन ।  

120. क्या प्रभु नाम कैसे भी ले सकते हैं ?

प्रभु का नाम किसी भी भाव से लें और कैसे भी लें वह हमारा कल्याण-ही-कल्याण करेगा । जैसे जमीन में बीज उलटा सीधा कैसे भी डाले वह फलीभूत होगा वैसे ही नाम भाव, कुभाव, आलस्य, मजाक कैसे भी लिया जाए वह फलीभूत होगा और हमारा परम हित ही करेगा । फिर प्रेम और भाव से एवं नियम से जो प्रभु का नाम जपता है उसके तो क्या कहने ।

119. प्रभु प्रेम कब जगेगा ?

प्रभु नाम का निरंतर सुमिरन करते रहेंगे तो अंतःकरण में प्रभु प्रेम एक-न-एक दिन जरूर जगेगा । कलियुग में इसके लिए नाम जप प्रधान साधन माना गया है । नाम जप से नामी प्रभु की झांकी हृदय में होने लगती है और हृदय प्रभु प्रेम से लबालब भर जाता है । नाम जप की महिमा है कि वह प्रभु प्रेम की जागृति हमारे हृदय-कमल पर कर देती है ।

118. भगवती गंगा माता के नाम की महिमा क्या है ?

सौ योजन की दूरी से भी भगवती गंगा माता का नाम लेकर साधारण जल से स्नान कर लें तो भी हम भवसागर पार हो जाते हैं । ऐसी अदभुत महिमा भगवती गंगा माता के नाम की है । ऐसे ही प्रभु के विभिन्न नामों की महिमा है जो हमारा मंगल, कल्याण और उद्धार करने में पूर्णतया सक्षम है ।

117. प्रभु तक हमें कैसे पहुँचना चाहिए ?

प्रभु नाम का धन कमाकर धनवान होकर प्रभु तक पहुँचना चाहिए । संसार में प्रभु नाम धन बिना कमाए निर्धन होकर प्रभु को अपना मुख नहीं दिखाना चाहिए । प्रभु नाम के जप से धनवान बनना ही सबसे बड़ा पुण्य है और ऐसा नहीं करना ही सबसे बड़ा पाप है । प्रभु के पास सदैव नाम रूपी धन लेकर ही जाना चाहिए जिससे प्रभु को हमें देखकर प्रसन्‍नता होगी ।

116. सच्चा धनवान कौन ?

धनवान वही है जिसके पास प्रभु नाम रूपी धन हो । संसारी धन संसार तक ही सीमित रहता है पर प्रभु नाम रूपी धन ब्रह्मांड में हर जगह हमारा मंगल करने की सामर्थ्य रखता है । हमारे संसार से जाने के बाद संसारी धन हमारा साथ छोड़ देता है पर प्रभु नाम रूपी परम धन बार - बार हमारे साथ रहता है और हर समय रहता है । एक बार भी प्रभु का लिया नाम व्यर्थ नहीं जाता और अंत तक हमारे साथ रहता है ।

115. भारतवर्ष के पास क्या खजाना है ?

भारतवर्ष के पास श्रीराम , श्रीकृष्ण और श्रीशिव रूपी नाम धन है । सनातन धर्म में प्रभु को भक्तों ने विभिन्‍न नामों से पुकारा है और प्रभु के श्रीलीला करते वक्त अनेक नाम पड़े है । प्रभु के सभी नामों में हमारा कल्याण और मंगल करने की एक जितनी सामर्थ्य है । सनातन धर्म में प्रभु नाम रूपी धन का महा खजाना है और खजाने से कोई भी नाम रत्न हम ले लें वह हमारा उद्धार कर देगा ।

114. नाम जप का सामर्थ्य क्या है ?

कलियुग में प्रभु के नाम की महिमा नामी यानी प्रभु के बराबर की है । इसलिए प्रभु का नाम कैसे भी लिया जाए वह तो मंगल-ही-मंगल करता है । जो सामर्थ्य प्रभु का है वही सामर्थ्य प्रभु नाम का भी है । प्रभु नाम जापकों ने नाम जप के प्रभाव से प्रभु की प्राप्ति भी कलियुग में की है, ऐसे एक नहीं अनगिनत उदाहरण शास्त्रों और श्री भक्तमालजी में मिलेंगे ।

113. कलियुग में किसका सहारा है ?

कलियुग में केवल प्रभु का नाम ही एकमात्र आधार है । जिसने भी कलियुग में भवसागर पार किया है उसने नाम जप का आधार लिया है और उसी के बल पर भवसागर पार किया है । ऐसा सभी संतों और भक्तों के चरित्र में देखने को मिलेगा कि उन्होंने कलियुग में प्रभु नाम जप का ही जीवन में सहारा लिया है ।

112. प्रभु नाम जप से क्या होगा ?

प्रभु का नाम जपने से हम तर जाएंगे और भव के पार उतर जाएंगे । कलियुग में प्रभु नाम जप जहाज के समान है जिसमें बैठकर भवसागर के पार उतरा जा सकता है । जैसे एक चींटी सागर पार नहीं कर सकती पर किसी जहाज में बैठ जाए तो बिना परिश्रम सागर पार हो जाएगी वैसे ही प्रभु नाम जप हम मनुष्यों को भवसागर के पार उतार देता है ।

111. मन को शांति कब मिलेगी ?

मन को शांत करना है तो उसे प्रभु का गुणगान ही सुनाना पड़ेगा । जब तक मन भटकता रहेगा तब तक उसे शांति नहीं मिलेगी , उसे बैठकर प्रभु नाम का सुमिरन ही करना पड़ेगा तभी शांति मिलेगी । नाम जप से ही शांति मिलेगी और कलियुग में अन्य कोई भी उपाय नहीं है और जो हैं वे बहुत कठिन हैं । इसलिए जीवन में नाम जप को ही प्रधानता देनी चाहिए ।

110. प्रभु नाम जप कब करना चाहिए ?

शाम-सवेरे प्रभु नाम का ही गुणगान गाना चाहिए । यह नियम जीवन में पक्का कर लेना चाहिए कि सुबह और शाम की मंगल बेला में प्रभु नाम जप करना ही चाहिए । प्रभु नाम जप इन दो समय निश्चित होने से हमारा मंगल और कल्याण कोई नहीं रोक पाएगा । वैसे तो जब भी समय मिले प्रभु नाम जप करना चाहिए पर सुबह और शाम तो अवश्य करना ही चाहिए ।

109. मन में कौन-सा दीपक जलाएं ?

मन में प्रभु नाम का ही दीपक जलाएं । चाहे राजा हो या साधारण जीव प्रभु नाम का दीप सबके लिए अत्यंत जरूरी है । राजा श्री परीक्षितजी आध्यात्मिक दृष्टि से सोए हुए थे और राज-पाट में खोए हुए थे । ऋषि के श्राप ने उन्हें जगा दिया और उनके जीवन में प्रभु नाम के दीप को जलने की इस प्रकार प्रेरणा हो गई ।

108. प्रभु नाम बिना हमारी क्या गति है ?

बिना प्रभु नाम के संसार में हमारी कोई गति नहीं है । प्रभु नाम के बिना हमारी हालत असहाय जैसी है जिसका कोई सहारा दुनिया में नहीं हो । प्रभु नाम हमें सहारा भी देता है और हमें बल भी देता है । प्रभु नाम हमारी रक्षा भी करता है और विपत्ति से हमें बचाता भी है ।  

107. प्रभु नाम रूपी धन का महत्व क्या है ?

प्रभु नाम रूपी धन के अलावा हमारे पास अन्य कोई धन है तो वह गौण है । प्रभु नाम रूपी धन होना ही भक्तों का लक्षण होता है । प्रभु नाम रूपी धन ब्रह्मांड में हर जगह हमारी रक्षा करता है और हमारे इहलोक और परलोक दोनों को संवारता है । इसलिए प्रभु नाम रूपी धन भक्तों का सबसे बड़ा धन होता है ।