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Showing posts from February, 2024

65. नाम में कितना रस है ?

प्रभु और माता का नाम इतना अदभुत है और उसमें इतना रस भरा हुआ है कि वह रस अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलेगा । संत और भक्त इसलिए ही प्रभु और माता के नाम के इतने बड़े जापक होते हैं और यहाँ तक कि नाम जप को अपने जीवन का प्रधान साधन मानते हैं ।

64. संत नाम जप के बारे में क्या कहते हैं ?

संत कहते हैं कि नेत्रों के प्याले बनाकर प्रभु के रूप को देखना चाहिए , कानों के प्याले बनाकर प्रभु की कथा का श्रवण करना चाहिए , जिह्वा के प्याले बनाकर प्रभु का अमृततुल्य नाम लेना चाहिए । संत प्रभु के नाम को अमृततुल्य मानते हैं और जिह्वा का धर्म बताते हैं कि उससे प्रभु के मंगलमय नाम का सदैव जप हो ।

63. प्रभु का नाम जप सबसे लाभकारी क्यों है ?

प्रभु के नाम जपरूपी धन का बंटवारा भाइयों में नहीं होता , सरकार उस पर कर नहीं लगा सकती , चोर उसकी चोरी नहीं कर सकते , यहाँ तक कि प्रभु श्री यमराजजी भी ऐसे भक्ति से लिया ग ए नामरूपी धन वाले का सम्मान करते हैं । इसलिए प्रभु नाम जप का कलियुग में इतना बड़ा महत्व है क्योंकि इससे लाभकारी कलियुग में कुछ भी नहीं है ।

62. कलियुग के संतों में क्या बात खास है ?

प्रभु प्राप्ति की सबसे बड़ी कड़ी प्रभु नाम की व्याकुलता ही है । प्रभु को प्राप्त करने वाले यानी आत्म-साक्षात्कार युक्त संतों और भक्तों ने कर्मकांड , वेदांत चिंतन कुछ किया या नहीं किया पर सबने एक चीज जरूर की है और सबमें एक बात हमें जरूर देखने को मिलेगी वह है प्रभु के लिए व्याकुलता से नाम जप ।

61. हमारी प्रत्येक इंद्रिय से हमें क्या करना चाहिए ?

हमारी प्रत्येक इंद्रिय को हमें प्रभु में लगा देना चाहिए । हमारे नेत्रों से सदैव प्रभु का दर्शन होता रहे , हमारे कानों से सदैव प्रभु की कथा का पान होता रहे और हमारी जिह्वा से सदैव प्रभु का नाम जपन होता रहे । जो जिह्वा प्रभु का नाम जप नहीं करती और संसार की व्यर्थ बातों में लगी रहती है उसकी शास्त्रों में निंदा की गई है और उसे मेंढक की टर्र - टर्र करने वाली जिह्वा की संज्ञा दी गई है ।

60. क्या प्रभु के नाम जप से सात्विकता आती है ?

प्रभु का नाम जप करने से और प्रभु का कीर्तन करने से हमारे शरीर के परमाणु बदल जाते हैं और उनमें अदभुत सात्विकता आ जाती है । इसलिए शास्त्रों, संतों और भक्तों ने एकमत से प्रभु नाम की महिमा जगत को बताई है कि कलियुग में इससे सरल साधन और कुछ भी नहीं है ।

59. क्या प्रभु के नाम जप का प्रभाव नास्तिकों पर भी पड़ा ?

प्रभु नाम की महिमा सुनकर बहुत सारे नास्तिकों के हाथ में भी माला आ गई और उनके हाथ माला फेरने में लग गए । प्रभु के नाम की इतनी बड़ी महिमा जगत में प्रसिद्ध है । कलियुग में तो प्रभु नाम जप की ही महिमा सबसे ज्यादा है । प्रभु नाम जप से कलियुग में सब कुछ संभव है ।

58. नाम जप की इतनी महिमा क्यों है ?

प्रभु के नाम का उच्चारण जीवन में करते ही रहना चाहिए । ऐसा उच्चारण करते-करते ही प्रभु में हमारा चित्त एकाग्र हो जाता है । यह सिद्धांत है कि हम जिनके   नाम का उच्चारण करेंगे हमारा चित्त उनमें ही एकाग्र होगा , इसलिए अपनी वाणी को सदैव प्रभु के नाम के उच्चारण करने में ही लगाना चाहिए ।

57. क्या नाम जप से सरल साधन कोई है ?

प्रभु नाम जपने से सरल कुछ भी नहीं है । सारे संसार के साधन करने से जो बात प्राप्त हो सक ता है वह सब कुछ केवल प्रभु नाम के जप से ही प्राप्त हो जा ता है । इसलिए एकांत में बैठकर प्रभु नाम जप करने की महिमा को सभी संतों ने गाया है । इसलिए नाम जप को कलियुग में सबसे प्रधान साधन माना गया है ।

56. कौन-सी वाणी धन्य होती है ?

वही वाणी धन्य है जो रोजाना प्रभु का नाम जप और गुणानुवाद करती है इसलिए हमें अपनी वाणी से प्रभु के नाम , रूप , गुण , श्रीलीला और धाम का गुणगान करना चाहिए । नाम जप की प्रधानता जीवन में होनी चाहिए क्योंकि वही वाणी धन्य होती है जो प्रभु के नाम का जप निरंतर करती रहती है ।

55. प्रभु नाम जापक को क्या देते हैं ?

जिनके नाम से , जिनकी कृपा से जीव सब बंधनों से मुक्त हो जाता है , जो मुक्ति को प्रसाद रूप में बांटते हैं , वे प्रभु नाम जप के कारण भक्त का बंधन स्वीकार कर लेते हैं । नाम जप के कारण यह कृपा प्रभु अपने भक्तों पर करते हैं । इसके सह स्त्रों उदहारण शास्त्रों में भरे पड़े हैं जब नाम जापक ने नाम जप से प्रभु को अपने अनुकूल कर लिया ।

54. भगवती मीरा बाई के जीवन में नाम जप का क्या प्रभाव था ?

एक प्रभु प्रतिमा और एक प्रभु नाम से भगवती मीराबाई ने भक्ति की वह ऊँचाई प्राप्त कर ली जिसके लिए सब तरसते हैं । भगवती मीरा बाई प्रभु के नाम और प्रभु के पदों का जप और गान निरंतर जीवन में करती रहती थी । यही कारण था कि बड़ी-से-बड़ी विपत्ति में उनकी रक्षा हुई और अंत में उन्‍होंने प्रभु को प्राप्त कर लि या और उनकी भक्ति अमर हो गई ।

53. क्या नाम प्रभु की प्राप्ति करवा देता है ?

जीवन में प्रभु नाम का उच्चारण करते रहने से एक-न-एक दिन प्रभु की प्राप्ति हो जाती है । ऐसा सभी संतों और भक्तों से साथ हुआ है । श्री भक्तमालजी में कितने नाम जापक संतों और भक्तों के चरित्र हैं जिन्‍होंने नाम जप के प्रभाव से प्रभु को प्राप्त किया है । कलियुग में तो प्रभु प्राप्ति के लिए नाम जप की महिमा अपरंपार है ।

52. किन प्रभु का नाम किसके लिए सर्वोपरि है ?

पाप नाश करने के लिए प्रभु श्री रामजी का नाम सर्वोपरि है , परमानंद प्रदान करने के लिए प्रभु श्री कृष्णजी का नाम सर्वोपरि है और भक्ति प्रदान करने के लिए प्रभु श्री महादेवजी का नाम सर्वोपरि है । वैसे यह सिद्धांत है कि प्रभु का प्रत्येक नाम सब कुछ प्रदान करने में सर्वोपरि है ।

51. नाम उच्चारण से कितना परमानंद मिलता है ?

अपनी जिह्वा से हमें पूछना चाहिए कि प्रभु नाम के उच्चारण में जो परमानंद मिलता है वह क्या त्रिलोकी में किसी अन्य पदार्थ में मिलता है । नाम जप करने वाले साधक को परम आनंद यानी परमानंद की अनुभूति होती है । सभी संत और भक्त एकमत हैं कि नाम जप में मिले परमानंद का बखान वे कर ही नहीं सकते ।

50. नाम जप में श्रद्धा क्यों होनी चाहिए ?

जो श्रद्धापूर्वक प्रभु का नाम जप करेगा उसके पाप कटने निश्चित हैं । नाम जप सिर्फ संख्या के लिए और माला पूरी करने के लिए नहीं करना चाहिए । यह पर्याप्त नहीं है । प्रभु के नाम जप में अटूट श्रद्धा होनी जरूरी है तभी हमारे पाप कटेंगे । नाम जप में श्रद्धा होने से वह हमारा मंगल नहीं बल्कि परम मंगल करे गा ।

49. प्रभु नाम की महिमा प्रभु पर भी लागू होती है ?

श्री कृष्णावतार में जब बाल रूप में प्रभु असुरों को मारते थे तो अमंगल आया ऐसा जानकर श्रीगोपीजन चिंतित हो जाती । फिर उन्हें प्रभु नाम की महिमा याद आती और प्रभु के लिए भी प्रभु के नाम का ही प्रयोग वे करती । प्रभु नाम की इतनी महिमा है कि श्रीगोपीजन बाल प्रभु की नजर उतारने के लिए भी प्रभु का नाम लेकर ही उसे मंत्र के रूप में पढ़ती थीं ।

48. प्रभु के नाम जप से क्या होता है ?

प्रभु नाम को पकड़ने से हमारे भीतर स्थित प्रभु हमारे जीवन में प्रकट होने लगते हैं । नाम में इतनी शक्ति होती है कि नामी प्रभु को हमारे अंतःकरण में प्रकट कर देता है । नाम जापक से नामी प्रभु दूर नहीं रह सकते और निरंतर नाम जपने वाले साधक को प्रभु अपनी अनुभूति देते ही हैं । यह शाश्वत सिद्धांत है कि नाम अपने नामी से मिला देता है ।

47. प्रभु के नाम में पाप नाश की कितनी क्षमता है ?

किसी के मुँह से प्रभु का नाम बिना जाने भी निकल जाए तो भी वह उसके पाप का नाश करता है । प्रभु के नाम में पाप नाश की अदभुत और अद्वितीय क्षमता होती है । शास्त्रों में अनगिनत उ दाह रण भरे पड़े हैं जब प्रभु के नाम ने पापी-से-पापी का भी उद्धार किया । अगर हमारे पूर्व जन्मों के संचित पाप अगणित हैं तो भी प्रभु का नाम उन सबको नष्‍ट करके हमारा मंगल करने की क्षमता रखता है ।

46. नाम जप के लिए संतों की क्या युक्ति थी ?

संतों को प्रभु का नाम जप अति प्रिय होता है और दैनिक कार्य में भी प्रभु का नाम कैसे लिया जाए इसकी युक्ति वे नि का ल लेते थे । भगवत् चिंतन करते हुए एक संत जो सब्जी बेचने का ठेला लगाते थे , वे सभी सब्जियों का नाम प्रभु के नाम पर रखकर सब्जी बेचा करते थे क्योंकि इससे उनका नाम जप निरंतर प्रभु का होता   रहता था ।

45. हम प्रभु को कब प्रिय लगते हैं ?

हमारी जिह्वा पर प्रभु का मंगलमय नाम आते ही हम प्रभु को प्रिय लगने लग जाते हैं । जब हम निरंतर प्रभु का नाम जप करते हैं और प्रभु को पुकारते हैं तो प्रभु को बहुत अच्छा लगता है । निरंतर नाम जप से नाम जापक अपनी प्रीत की डोर में प्रभु को बांध लेता है और परम स्वतंत्र प्रभु अपने नाम जापक के आधीन हो जाते हैं ।

44. जिह्वा का धर्म क्या है ?

अपनी सभी इंद्रियों से प्रभु रस का पान करना चाहिए । नेत्रों से प्रभु रूप का पान , जिह्वा से प्रभु नाम का पान , कानों से प्रभु कथा का पान करना चाहिए । इंद्रियों को संसार के अन्य उपयोग में कम-से-कम लेना चाहिए । जिह्वा का धर्म है कि प्रभु का गुणानुवाद करना और प्रभु का नाम जप करना । जिह्वा जब प्रभु नाम जप में   लगती है तभी उसका होना सार्थक है नहीं तो उस संसार की व्यर्थ बातों में लगी जिह्वा को शास्त्रों ने टर्र-टर्र करने वाली मेंढक की जिह्वा की उपमा दी है ।

43. प्रभु नाम जप से देवता कैसे प्रसन्न होते हैं ?

सभी देवताओं का एक स्थान हमारे शरीर के हरेक अंग में होता है इसलिए जैसे ही हमारे शरीर का प्रत्येक अंग प्रभु की सेवा में लगता है तो वहाँ विराजे देवता आनंदित होते हैं , तृप्त होते हैं और संतुष्ट होते हैं । जब कोई भक्त जिह्वा से प्रभु नाम का उच्चारण करता है तो प्रभु श्री अग्निदेवजी संतुष्ट हो जाते हैं क्योंकि वे जिह्वा पर विराजते हैं ।  

42. क्या नाम जप का अहंकार आ सकता है ?

नाम जप का अहंकार आ सकता है इसलिए हमें सावधान होकर नाम जप करना चाहिए । नाम जप का भी अहंकार कभी नहीं आना चाहिए कि मैंने प्रभु नाममाला का जीवन में खूब जप किया है । संतों और भक्तों ने कितने-कितने करोड़ों नाम जप  किए और तनिक भी अहंकार नहीं आने दि या कि वे इतने बड़े नाम जापक हैं । जब भी नाम जप का अहंकार आए हमारी दृष्टि उन संतों और भक्तों पर होनी चाहिए तो हमारा अहंकार नष्‍ट हो जाएगा ।    

41. वाणी पर नाम कब आता है ?

जो हमारे अंतःकरण में बसे होते हैं , वाणी से उन्हीं का नाम आता है , नेत्र उन्हीं के दर्शन करना चाहते हैं और कान उन्हीं के बारे में श्रवण करना चाहते हैं । इसलिए अपने अंतःकरण में सदैव प्रभु को ही बसाकर रखना चाहिए जिससे हमारी वाणी सदैव प्रभु का नाम जप करती रहे । इसी में हमारी वाणी की शोभा है क्योंकि हमें वाणी मिली ही प्रभु नाम जप के लिए है । पर हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपनी वाणी का उपयोग दुनियादारी में ज्यादा और नाम जप में कम करते हैं जबकि होना इसका उ ल्टा चाहिए ।

40. हमें निरंतर क्या करना चाहिए ?

हमारी जिह्वा पर निरंतर प्रभु का ही नाम चलते रहना चाहिए । नाम से हमारे पूर्व जन्मों के संचित पाप कटते हैं और नए पाप नहीं होते क्योंकि हमारी प्रवृत्ति सात्विक बन जाती है । प्रभु का नाम हमें परमानंद की अनुभूति तक पहुँ चा देता है और प्रभु के श्रीकमलचरणों में हमें पहुँ चा देता है ।

39. प्रभु नाम जप से पाप कैसे भस्म होते हैं ?

जैसे कपास (रूई) के एक बड़े गोदाम में एक अग्नि की चिंगारी लग जाती है तो कुछ ही समय में पूरा कपास जल जाता है वैसे ही प्रभु का एक सच्‍चा नाम मुख से निकल जाए तो समस्‍त पाप जल जाते हैं । इसलिए प्रभु के नाम के जप की आदत जीवन में बनानी चाहिए ।

38. प्रभु के नाम का आग्रह शास्त्रों और संतों ने क्यों किया है ?

एक चाण्‍डाल जो जाति में सबसे नीचा माना गया है , अगर उसके मुँह से भी प्रभु का नाम निकलता है तो वह भी सर्वश्रेष्‍ठ बन जाता है । फिर जो श्रेष्‍ठ जाति में जन्मे हैं , ऐसे लोग जब प्रभु के नाम का उच्‍चारण करते हैं तब मानो उन्‍होंने तप , हवन , तीर्थस्‍नान , सदाचार पालन और वेदाध्‍ययन सब कुछ कर लिया । सबका फल उन्‍हें प्रभु के नाम को जपने से ही मिल जाता है । प्रभु नाम का उच्‍चारण हमारे मुँह से निरंतर होता रहे , ऐसा आग्रह शास्त्रों और संतों ने किया है । जीवन में प्रभु के नाम को जपने की आदत हमें बनानी चाहिए ।

37. क्या प्रभु नाम जप से मंगल होना तय है ?

भगवान के नामों का श्रवण और कीर्तन करने वाले की गति उत्तम होती है । भूले-भटके भी कोई प्रभु का वंद न या स्‍मरण करता है तो भी वह पूजनीय हो जाता है । प्रभु का नाम कैसे भी लिया जाए वह मंगल ही करता है । कंस और रावण ने प्रभु का नाम वैर से लिया , अजामिलजी ने अपने बेटे को पुकारने के लिए प्रभु का नाम लिया और ऋषि श्री वाल्मीकिजी ने प्रभु का नाम उल्टा लिया पर प्रभु के नाम ने सबका मंगल किया । प्रभु का नाम कैसे भी लिया जाए वह जीव का मंगल ही करेगा , यह एक अनिवार्य सत्‍य है ।