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Showing posts from January, 2024

36. क्या प्रभु को भी जप में आनंद आता है ?

भक्ति का इतना सामर्थ्य है कि प्रभु भी भक्‍त का नाम जपते हैं । जैसे भक्त को प्रभु का नाम जपने में परमानंद आता है वैसे ही प्रभु भी अपने प्राण प्रिय भक्तों का नाम जपते हैं और परम आनंद मानते हैं । नाम जप अंश (जीव) और अंशी (प्रभु) दोनों को आनंद प्रदान करता है ।

35. नाम से स्मरण तक की यात्रा क्या है ?

स्मरण भक्ति का सही अर्थ है कि नाम लिए बिना भी प्रभु स्मरण हो जाए । श्री प्रह्लादजी और श्रीगोपीजन बिना नाम लिए प्रभु का निरंतर स्मरण करते रहते थे । नाम हमें आरंभ से ही प्रभु का स्मरण करने का अभ्यास करता है । फिर परिपक्व अवस्था में नाम के बिना भी प्रभु का लगातार स्मरण चलता रहता है ।  

34. प्रभु के अनेक नाम क्यों हैं ?

नाम अनेक पर नामी (प्रभु) तो एक ही हैं । एक नामी (प्रभु) के अनंत नाम हैं । प्रभु जैसे-जैसे श्रीलीला करते हैं उनके नाम श्रीलीला अनुसार पड़ते जाते हैं । पर प्रभु का हर नाम समान है और समान फल दे ने वाला है । प्रभु के हर नाम में हमारा मंगल और कल्याण करने की समान शक्ति है ।

33. नाम जापक की सबसे ऊँची अवस्था क्या है ?

प्रभु स्मरण के लिए नाम है पर एक अवस्था ऐसी आनी चाहिए जब स्मरण को नाम की आवश्यकता ही नहीं रहे और प्रभु का स्मरण जीवन में निरंतर चलता रहे । यह नाम जापक की सबसे ऊँची अवस्था है क्योंकि नाम ने वह कर दिया जो उसे करना था ।

32. नाम जप से प्रभु का स्मरण कैसे होता है ?

जैसे एक माँ को विदेश पढ़ने गए हुए उसके बेटे का नाम लिए बिना उसकी याद आती है ऐसे ही लगातार प्रभु का स्मरण नाम से होता जाएगा तो एक अवस्था ऐसी आएगी कि प्रभु का नाम लिए बिना भी प्रभु की याद हमें जीवन में आती रहेगी और प्रभु का स्मरण जीवन में निरंतर होता रहेगा । ये नाम जप की सच्ची उपलब्धि होती है ।

31. नाम स्मरण क्या करता है ?

नाम स्मरण में नाम के आधार से नामी (प्रभु) का स्मरण होता है । प्रभु का स्मरण होते ही हमारे संचित पाप कटते हैं और हमें परमानंद की अनुभूति होती है । प्रभु का स्मरण होने पर हमा रे इहलोक और परलोक दोनों सुधर जाता है । प्रभु का नाम जगत में भी हमारा मंगल करता है और जगत के बाद भी हमारा मंगल करता है ।

30. चौबीस घंटे प्रभु का नाम जप कैसे हो सकता है ?

चौबीस घंटे प्रभु का नाम जप संभव है पर चौबीस घंटे पूजा , भजन , कीर्तन , श्रवण नहीं हो सकता । पर चौबीस घंटे प्रभु का जप से स्मरण तो जरूर हो सकता है । इसलिए चौबीस घंटे प्रभु का जप से स्मरण जीवन में होना चाहिए । प्रभु का जप से स्मरण भक्ति का एक बहुत श्रेष्ठ अंग है । श्रीगोपीजन ने निरंतर प्रभु नाम लेकर स्मरण किया और इसलिए वे प्रभु को अत्यंत प्रिय हो गईं ।

29. प्रभु का नाम कैसे हमारी जुबां पर चलाना चाहिए ?

अभ्यास से और प्रभु प्रेम के कारण प्रभु का नाम अपनी जुबां पर सदैव चलते रहना चाहिए । दो ही शर्त है पहला, अभ्यास से और दूसरा, प्रभु के लिए प्रेम के कारण निरंतर प्रभु का नाम हमारी जुबां पर चलते रहना चाहिए । अगर अभ्यास का दृढ़ निश्चय है और प्रभु के लिए पूर्ण प्रेम है तो ऐसा होना संभव है ।     

28. क्या प्रभु भी अपने भक्तों का नाम लेते है ?

प्रभु नींद में भी श्रीगोपीजन का नाम लेते थे । यह बात भगवती रुक्मिणी माता ने देवर्षि प्रभु श्री नारदजी को बताई थी । प्रभु प्रेम की इतनी ऊँ‍‍ची अवस्था को श्री गोपीजन प्राप्त हो गई थी कि प्रभु भी उनका स्मरण करके उनका नाम लेते थे । जैसे साधक को प्रभु का नाम लेने में आनंद आता है वैसे ही प्रभु को भी अपने प्रिय भक्तों का नाम लेने में परम आनंद आता है ।

27. श्रीगोपीजन का नाम जप कैसा था ?

श्रीगोपीजन के मन में प्रभु रमे हुए थे । अंतःकरण में वे सदैव प्रभु को ही निहारती थीं । उनकी जिह्वा पर भी सदैव प्रभु का ही नाम होता था । वे तो प्रभु का नाम लेती रहती थीं । वे जो दूध-दही बेचने जाती थीं तो भी यह नहीं कहती थी कि दूध-दही ले लो, वे कहती थी कि कान्हा ले लो । नाम में वे इतनी आ सक्त हो गईं थीं ।  

26. क्या जीवन की हर धड़कन पर नाम जप हो सकता है ?

अपने जीवन की हर धड़कन पर प्रभु का नाम जप हो जाना चाहिए । ऐसा संभव है कि नाम हाथों की माला की जगह श्‍वासों की माला पर होने लग जाए पर यह परिपक्व अवस्था है । हमें अभ्यास और प्रयास करते हुए ऐसी अवस्था तक पहुँचना चाहिए ।

25. प्रभु के लिए सबसे सरल साधन क्या है ?

प्रभु का नाम उच्चारण बड़ा सरल साधन है । नाम जप से अधिक सरल साधन कुछ भी नहीं है इसलिए सभी संतों ने इसका महत्व बतलाया है । कलियुग में नाम जप प्रधान साधन है और इसका महत्व सबसे ज्यादा है । इसलिए सभी शास्त्रों, संतों ने नाम जप की महिमा गाई है ।

24. क्या प्रभु का नाम गिनना हमारा काम है ?

प्रभु का नाम लेना हमारा काम और उस नाम को गिनना प्रभु के पार्षदों का काम । पर हम यह गलती कर बैठते हैं कि हम नाम लेकर गिनने लगते हैं कि हमने कितने नाम लिए । हमें तो बस श्‍वासों की माला पर प्रभु का मंगल नाम लेते रहना है । प्रभु हम पर कृपा गिनकर नहीं करते तो हमें भी ऐसा नहीं करना चाहिए । अभ्यास के लिए शुरु में नाम माला की गिनती पर करना प्रारंभ करना चाहिए पर एक अवस्था ऐसी आनी चाहिए जब गिनती छूट जाए और नाम श्‍वासों पर चलने लगे ।  

23. प्रभु नाम जप से क्या अनुभूति होनी चाहिए ?

प्रभु के नाम उच्चारण करने से हमारे हृदय में प्रभु के लिए प्रेम और आनंद की लहर उठनी चाहिए । हमें पूर्ण परमानंद प्रभु की अनुभूति होनी चाहिए । प्रभु नाम से मीठा कुछ भी नहीं है जिस कारण प्रभु का नाम हमें प्रभु प्रेम और परमानंद के सागर में डुबो देता है ।

22. प्रभु नाम जप का क्या फल है ?

प्रभु के नाम के उच्चारण का फल अद्वितीय है । हमारे संचित पाप कटते हैं, मन में शांति और परमानंद की अनुभूति होती है और हमारा इहलोक और परलोक में मंगल और कल्याण सुनिश्चित हो जाता है । प्रभु का नाम एक कवच की तरह सदा हमारी रक्षा करता है ।

21. नाम जप कैसे करना चाहिए ?

प्रभु का नाम जपते समय हमारा मन जिह्वा के साथ जुड़ जाए , तात्पर्य यह है कि मन का अपनी सभी इंद्रियों के साथ नाम में जुड़ना सबसे जरूरी है तभी हमारा नाम जप साकार होगा । नाम जप ते समय अपना चंचल मन सर्वप्रथम जप में लगाना चाहिए ।

20. प्रभु नाम जप कब फलीभूत होता है ?

अगर पूर्ण भावना से प्रभु का नाम जप होता है तो वह निश्चित ही फलीभूत होता है । नाम जप के पीछे प्रभु के लिए भाव का मुख्य महत्व है । वैसे बिना भाव से लिया नाम भी हमारा मंगल ही करेगा तो फिर भाव से लिया नाम क्या नहीं कर सकता ।

19. कौन-सी आदत हमारा मंगल करेगी ?

प्रभु का निरंतर नाम लेने की आदत जीवन में लग जानी चाहिए । प्रभु नाम लिए बिना रहना ही असंभव हो जाना चाहिए । ये ही वह आदत है जो हमारा परम मंगल करेगी और हमें भवसागर से तार कर हमारा परलोक भी संवार देगी ।

18. क्या प्रभु की सारी शक्तियां नाम में समाहित हैं ?

प्रभु ने अपनी समस्त शक्तियों को अपने नाम में समाहित करके रखा है । इसलिए जो सामर्थ्‍य प्रभु का है वही सामर्थ्‍य प्रभु के नाम का है । जैसे प्रभु के लिए कुछ भी करना असंभव नहीं है वैसे ही प्रभु के नाम के लिए भी कुछ भी करना असंभव नहीं है ।

17. नाम ने क्या प्रभु से भी ज्यादा लोगों का मंगल किया है ?

जब प्रभु अवतार लेकर आते हैं तो अपने अवतार काल में जो भी प्रभु के संपर्क में आता है प्रभु उसे तार देते हैं पर प्रभु के स्वधाम वापस जाने के बाद यही काम प्रभु का नाम लगातार करता रहता है । न जाने प्रत्यक्ष प्रभु से भी कितने ज्यादा लोगों को प्रभु के नाम ने तारा है । प्रभु के नाम ने कि तनों को तारा है उसकी कोई गिनती ही नहीं कर सकता ।

16. प्रभु के आयुध कैसे नाम जापक की रक्षा करते हैं ?

क्रोधित ऋषि श्री विश्वामित्रजी के कहने पर प्रभु श्री रामजी ने सूर्यास्त तक श्री काशीनरेश का वध करने का संकल्प लिया । श्री काशीनरेश भगवती अंजनी माता की शरण में गए जिन्होंने प्रभु श्री हनुमानजी को उनकी रक्षा का दायित्व सौपा । प्रभु श्री हनुमानजी ने श्री काशीनरेश को श्री अयोध्याजी में सरयू माता में खड़े होकर “श्रीराम” नाम का निरंतर जप करने को कहा । नाम जप के प्रभाव से प्रभु श्री रामजी का छोड़ा   रामबाण श्री काशीनरेश की परिक्रमा करके आ गया और उनका वध नहीं किया । प्रभु के आयुध का कार्य है प्रभु नाम जापक की रक्षा करना ।

15. उल्टा नाम जप भी कैसे मंगल करता है ?

ऋषि श्री वाल्मीकिजी नाम प्रताप से इतने बड़े त्रिकालदर्शी ऋषि बने । पहले वे जंगल में लूट-पाट करते थे । देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने उन्हें “राम” कहने को कहा तो प्रभु का पवित्र नाम उनके मुँह से निकला ही नहीं । तब देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने युक्ति करके उन्हें मरा-मरा कहने को कहा । प्रभु का नाम उल्टा जपने पर भी नाम ने उनका परम मंगल कर दिया ।

14. अजामिलजी को किसने तारा ?

घोर दुराचार में फंसे हुए अजामिलजी को उनके पुत्र का नाम “नारायण” पुकारने पर प्रभु के पार्षदों ने यमदूतों से बचा लिया । क्योंकि उन्होंने यह माना कि अजामिलजी ने प्रभु को पुकारा है जबकि श्रीमद् भागवतजी महापुराण में प्रभु श्री शुकदेवजी कहते हैं कि उन्होंने अपने पुत्र मोह में पुत्र को पुकारा था ।

13. नाम जप और मंत्र जप में क्या अंतर है ?

मंत्र जप गुरु प्रदत्त होता है, एक निर्धारित संख्या का होता है और यम-नियम उसके साथ जुड़े हुए होते हैं । नाम जप में दयालु और कृपालु प्रभु ने कोई नियम नहीं जोड़ा । कोई भी, किसी भी अवस्था में, कभी भी, कैसे भी और कहीं भी प्रभु का कोई भी मंगलमय नाम का जाप करने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र है ।

12. एक दिन में कितने नाम जप कर सकते हैं ?

जिनको गुरु प्रदत्त मंत्र मिला हुआ है उन्हें अपने गुरु की बता ई संख्या का जाप करना चाहिए । इसके अलावा भी जितना हो सके प्रभु का नाम जप करना चाहिए । प्रभु ने हमें एक दिन में 86400 सेकेंड समय दिया है अब यह हमारे ऊपर है कि हम कितना समय वापस प्रभु को उनका नाम जप करके और सुमिरन करके देते हैं ।

11. नाम जप सुबह करना चाहिए या शाम को ?

सुबह नाम जप जरुर करना चाहिए । प्रभु के नाम के साथ ही दिन की मंगल शुरुआत करनी चाहिए । शाम को भी सूर्यास्त के समय नाम जप करना चाहिए जब हम रात्रि में प्रवेश करते हैं । इसके अलावा दिन में जब भी समय मिले या फिर परिपक्व अवस्था होने पर कार्य के साथ नाम जप चलना चाहिए ।

10. नाम जप के क्या लाभ हैं ?

नाम जप से क्या लाभ नहीं है । नाम जप से प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रभु श्री रामजी को अपने अनुकूल करके रखा है । प्रभु अपने नाम जापक की हर व्यवस्था, हर समाधान करते हैं । प्रभु का नाम विपत्ति में रक्षा कवच की तरह काम करता है । नाम से हमारे पाप कटते हैं, नर्क के प्रावधान से हम बच जाते हैं । नाम हमें परमानंद की अनुभूति देता है और हमारा इहलोक और परलोक दोनों सं वार देता है ।

9. नाम जप कितने प्रकार के होते हैं ?

बहुत ही सरल भाषा में समझना हो तो नाम जप दो प्रकार से उच्चारण करके और मन-मन में किया जा सकता है । पहले आरंभ में उच्चारण करके माला के साथ या लिखकर नाम जप किया जाता है । फिर परिपक्व अवस्था में मन-मन में नाम जप होना प्रारंभ हो जाता है ।

8. क्या नाम जप को केवल माला लेकर ही किया जा सकता हैं ?

शास्त्रीय विधि माला लेकर नाम जप करने की है । पर अभी बाजार में कुछ जप   काउंटर आ गए हैं, कुछ मोबाइल ऐप भी आ गए हैं जिससे भी नाम जप किया जा सकता है । पर सिद्ध अवस्था में नाम जापक श्वासों की माला पर नाम जप करते हैं । वे एक भी श्वास नाम जप बिना खाली नहीं जाने देते ।

7. पूजा करना और नाम जप करना एक ही हैं या अलग ?

पूजा करना और नाम जप दोनों भक्ति के अंतर्गत आते हैं पर दोनों अलग-अलग हैं । प्रभु की पूजा प्रभु के लिए दिन-रात की परिचर्या है जबकि नाम जप प्रभु को पुकारना, प्रभु को याद करना है । पूजा का एक निश्चित समय होता है पर प्रभु नाम जप करके प्रभु को याद कभी भी किया जा सकता है ।

6. क्या नाम जप में कोई नियम है ?

मंत्रजप, कर्मकांड में शास्त्रों द्वारा बताए नियम लागू होते हैं पर प्रभु के नाम जप में प्रभु ने कोई नियम नहीं लागू किया है । कोई भी, कभी भी, किसी भी अवस्था में, कैसे भी प्रभु का नाम लेने के लिए स्वतंत्र है और उसका मंगल-ही-मंगल होना तय है ।

5. कौन-सा नाम जप सर्वश्रेष्ठ हैं ?

कभी यह भेद बुद्धि नहीं रखनी चाहिए कि कौन-सा नाम बड़ा या छोटा है । प्रभु एक हैं और प्रभु के नाम अनेक हैं । इसलिए प्रभु और माता के सभी नाम बराबर फल देने वाले हैं, उनमें कोई छोटा या बड़ा नहीं है और कोई भेद नहीं है । हमारा मंगल करने में सभी नाम बराबर समर्थ हैं । इसलिए जो नाम प्रिय हो और जिसमें रुचि हो वह नाम जप हम निरंतर और निसंकोच कर सकते हैं ।

4. नाम जप कैसे करना चाहिए ?

नाम जप नियमित करना चाहिए और माला से करना चाहिए । यह शास्त्रीय विधि है । नियमित नाम जप एक आसन पर बैठकर माला से करना चाहिए । पर माला की संख्या पूरी होने पर प्रभु नाम जप दिनभर में जब भी समय मिले तो मन-ही-मन करना चाहिए । कार्य करते हुए भी प्रभु का नाम जप मन-ही-मन चलना चाहिए ।

3. नाम जप क्यों किया जाना चाहिए ?

हर युग में प्रभु प्राप्ति के अलग-अलग साधन होते हैं । शास्त्रों में कलियुग में प्रभु प्राप्ति का साधन नाम जप को बताया गया है । इसलिए प्रभु को प्राप्त करने के लिए, प्रभु की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए कलियुग में नाम जप किया जाना चाहिए ।

2. नाम जप क्या हैं ?

नाम जप प्रभु का सुमिरन है, प्रभु को याद करना है । जैसे हम किसी मनुष्य का नाम लेते हैं तो उसका ध्यान हमारी तरफ जाता है । वैसे ही प्रभु का नाम जप प्रभु की दृष्टि हमारे ऊपर पड़वा देता है । प्रभु की दृष्टि पड़ते ही प्रभु की करुणा और कृपा की अनुभूति हमें होती है ।

1. नाम को “नाम भगवान” क्यों कहते हैं ?

प्रभु के नाम की इतनी बड़ी महिमा है कि संत इसे सिर्फ नाम नहीं कहते । प्रभु के नाम को “नाम भगवान” कहते हैं क्योंकि प्रभु का नाम वह सब कुछ करने में समर्थ है जो प्रभु कर सकते हैं । इसलिए प्रभु और प्रभु के नाम में कोई अंतर नहीं है ।

कलियुग केवल नाम अधारा

नाम जप की महिमा:   नाम जप कलियुग में भक्ति का एक मुख्य अंग है । प्रभु के नाम जप की महिमा असीम है । संतों ने प्रभु नाम को “नाम भगवान” की संज्ञा दी है । हर युग में अपने साधन हुआ करते हैं । कलियुग में नाम जप और नाम कीर्तन ही प्रधान साधन है । सभी शास्त्र, संत और पंथ एकमत हैं कि कलियुग में नाम की ही प्रधानता है । संत कहते है कि “कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा” । सभी शास्त्रों में नाम की महिमा गाई हुई है । श्री रामचरितमानसजी की तो एक बहुत प्रसिद्ध चौपाई है “कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना, एक अधार राम गुन गाना” । किनका नाम जप किया जाए:   जिन्होंने गुरु दीक्षा ली हुई है वे गुरु प्रदत्त नाम का जाप करें क्योंकि वही उनके लिए सर्वश्रेष्ठ है । वैसे नीचे दी गई नामावली में से किसी भी नाम का जो आपको प्रिय हो, उसका जाप कर सकते हैं ।