Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2024

106. जीवन में कौन-सी नेक कमाई करनी चाहिए ?

प्रभु नाम रूपी नेक कमाई जीवन में करते ही रहना चाहिए । इससे बड़ी और कोई कमाई नहीं है जो जीवन में और जीवन के बाद भी हमारे काम आए । संसार की कमाई यानी धन-संपत्ति जीवन के बाद काम आने वाली नहीं है पर प्रभु नाम जप की कमाई इहलोक और परलोक दोनों जगह काम आती है ।   

105. पापी-से-पापी जीव भी अगर अंत समय में प्रभु नाम का उच्चारण कर देता है तो क्या होता है ?

पापी-से-पापी जीव भी अगर अपने अंत समय में प्रभु नाम का उच्चारण कर देता है वह वापस संसार में लौटकर नहीं आता । पर ऐसा एकदम संभव नहीं होता क्योंकि पाप हमारे कंठ में बैठकर अंत समय नाम उच्चारण होने नहीं देते । इसलिए पाप नहीं करते हुए जीवन में ऐसा अभ्यास करना चाहिए कि अंत समय प्रभु नाम का उच्चारण हो जाए ।

104. क्या नाम जप से प्रभु पर भरोसा बढ़ता है ?

जिन प्रभु का नाम हम सुमिरन करते हैं उन प्रभु का पूरा भरोसा हमें जीवन में हो जाता है । नाम जप से प्रभु में आस्था और भरोसा कायम होता है जो मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है । प्रभु पर अटूट भरोसा कायम करने का काम प्रभु का नाम सफलता के साथ कर देता है ।

103. सबसे श्रेष्ठ मांग प्रभु से क्या है ?

सभी प्रभु से कुछ-न-कुछ मांगते ही रहते हैं , संसारी प्रभु से कामनाओं की पूर्ति मांगते हैं , लोभी प्रभु से धन मांगते हैं । पर सबसे श्रेष्ठ मांग संतों की होती है जो प्रभु से प्रभु का नाम मांगते हैं । उनकी नाम में प्रबल आस्था हो और श्‍वास-श्‍वास में उनका नाम जप होता रहे, संत यही प्रभु से मांगते हैं ।

102. भक्ति प्रबल कब होती है ?

बार-बार प्रभु की कथा सुनें , प्रभु का नाम जपें और प्रभु का गुणगान करें तभी भक्ति प्रबल होती है । कलियुग में तो भक्ति को प्रबल करने का नाम जप सबसे बड़ा साधन है । सभी शास्त्र और संत एकमत हैं कि कलियुग में भक्ति को प्रबल करने का सबसे सरल और सटीक उपाय प्रभु नाम जप ही है ।

101. क्या नाम जप से जन्मों-जन्मों के अंधकार दूर हो जाते हैं ?

प्रभु के नाम जपने से हमारे भीतर के जन्मों-जन्मों के अंधकार दूर हो जाते हैं । जैसे कितने ही वर्षों का अँधेरा हो पर दीपक जलाते ही वह वर्षों का अँधेरा क्षणभर में नष्‍ट हो जाता है वैसे ही नाम जप के प्रभाव से जन्मों-जन्मों के अंधकार दूर हो जाते हैं ।

100. नाम जप में पाप नाश का कितना सामर्थ्य है ?

तीनों लोकों के सभी जीवों में इतना सामर्थ्‍य नहीं कि वे सब मिलकर भी इतना पाप कर सकें जो प्रभु के एक नाम से नष्ट नहीं हो सके । प्रभु के श्रीनाम में इतना बड़ा सामर्थ्‍य है । संतों ने नाम जप के सामर्थ्‍य को केवल अदभुत, अदभुत और अदभुत बताया है ।

99. अंत समय प्रभु का नाम निकलने से क्या होता है ?

अंत समय जिसके मुँह से प्रभु का नाम निकल जाता है उसे फिर कभी भी संसार में नहीं आना पड़ता । उसका संसार से आवागमन समाप्त हो जाता है और प्रभु के श्रीकमलचरणों में हरदम के लिए उसे स्थान मिल जाता है । अंत समय मुँह से प्रभु का नाम निकलना मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है ।

98. नाम जापक को क्या नर्क नहीं जाना पड़ता ?

प्रभु का नाम सच्चे मन से और सच्चे भाव से ले लिया तो वह जीव कभी नर्क नहीं जाता । प्रभु के श्रीनाम लेने का इतना बड़ा प्रभाव है । यमदूतों को यह स्पष्ट निर्देश है कि जो प्रभु का नाम जप निरंतर करता है उसकी तरफ देखना भी नहीं है । नर्क का प्रावधान नाम जापक के लिए समाप्त हो जाता है ।

97. क्या नवधा भक्ति में भी नाम जप बताया गया है ?

नवधा भक्ति के उपदेश में प्रभु ने पांचवी भक्ति प्रभु के मंत्ररूपी नाम पर विश्वास रखकर उसका जप करना बताया है । नाम जप को नवधा भक्ति में भी स्थान दिया गया है । संत विनोद में कहते हैं कि अगर प्रभु नवधा भक्ति का उपदेश कलियुग में देते तो नाम जप को प्रथम स्थान पर रखते ।

96. अंतिम समय क्या होना चाहिए ?

अंतिम समय मुख से सिर्फ प्रभु का नाम ही निकलना चाहिए । अंतिम समय निकला प्रभु का नाम उस जीव को तत्काल प्रभु के परमधाम पहुँचा देता है । संत और भक्त जीवन भर प्रभु का नाम लेकर यह प्रयास करते हैं कि उनके अंतिम समय प्रभु का नाम ही निकले । निरंतर प्रयास से वे ऐसा करने में सफल भी होते हैं ।

95. संतों ने नाम जप के लिए क्या कहा ?

संतों ने कहा कि जिस जीव ने प्रभु का नाम नहीं लिया तो फिर जीवन धारण करके भी उसने क्या किया । उसका जीवन धारण करना व्यर्थ का श्रम है । मानव जीवन का सही उपयोग करना है तो प्रभु नाम जप को जीवन में प्रथम स्थान देना ही पड़ेगा । कलियुग में तो प्रभु नाम जप को प्रथम पायदान पर रखा गया है । संतों ने कलियुग में भक्ति की शुरुआत ही प्रभु नाम जप से मानी है ।   

94. क्या प्रभु का नाम अमृततुल्य है ?

प्रभु का नाम अमृततुल्य है । इसलिए प्रभु नाम जप को नाम-अमृत कहते है । स्वर्ग के अमृत से भी बहुत गुना बड़ा प्रभाव प्रभु नाम-अमृत का है । ब्रह्मांड में ऐसा कुछ भी नहीं जो प्रभु नाम जप से प्राप्त नहीं किया जा सके । प्रभु नाम जापक के लिए सब सुलभ होता है, नाम की महिमा इतनी बड़ी है ।

93. प्रभु नाम जप का परम फल कब मिलता है ?

प्रभु का नाम जप अपने द्वारा ही होना चाहिए तभी उस नाम जप का परम और सच्चा फल मिलता है । कलियुग में नाम जप करने के भी कई साधन आ गए, कुछ नहीं से तो वे भी ठीक हैं । पर प्रभु नाम जप का परम और सच्चा फल स्‍वयं नाम जप करने से ही मिलता है, यह सिद्धांत है ।

92. कलियुग में सबसे बड़ा परमानंद क्या है ?

कलियुग में सबसे बड़ा परमानंद प्रभु नाम जप का परमानंद है । ऐसा सभी संतों और भक्तों का अनुभव रहा है कि प्रभु नाम जप करने में जितना आनंद और परमानंद है उतना अन्य किसी सांसारिक चीज में यहाँ तक कि प्रभु के लिए किए अन्य किसी साधन में भी उतना परमानंद नहीं है ।    

91. नाम जप क्या करता है ?

प्रभु के नाम की महिमा है कि वह नाम हमें पवित्र करेगा और फिर हमारा प्रभु से मिलन करवाएगा । नाम हमें प्रभु के श्रीकमलचरणों में स्थान दिला देगा और हमारा आवागमन मिटा देगा । नाम के प्रभाव से हम प्रभु के धाम पहुँच जाएंगे और फिर किसी माता के गर्भ में नहीं जाना पड़ेगा ।

90. श्री अजामिलजी को नाम जप से क्या मिला ?

श्री अजामिलजी ने अपने पुत्र के बहाने अपने अंतिम समय में प्रभु का नाम लिया तो भी उनको उसका कितना बड़ा फल मिला कि वे यमपाश से मुक्‍त हो गए और नर्क जाने से बच गए । फिर बचे हुए जीवन में प्रभु नाम का आश्रय लेकर वे प्रभु के धाम पहुँच गए ।

89. जीव को प्रभु का नाम कब लेना चाहिए ?

जीव को मन में , वाणी से और कर्म करते हुए प्रभु का नाम लेना चाहिए । कोई भी समय नाम जप के बिना नहीं जाने देना चाहिए । संतों और भक्तों ने श्‍वास-श्‍वास   में नाम जप किया है, कर्म करते वक्त नाम जप किया है और मन में निरंतर नाम जप उन का चलता ही रहता है ।

88. प्रभु कितने करुणानिधान हैं ?

अवहेलना में , हास्‍य में भी जो प्रभु का नाम ले लेता है , प्रभु उसका भी उद्धार कर देते हैं । प्रभु इतने करुणानिधान हैं । नाम कैसे भी लिया जाए प्रभु उस जीव का कल्याण किए बिना नहीं रहते हैं । कलियुग में इसलिए प्रभु नाम जप की विशेष महिमा है । नाम जप से कलियुग में सब कुछ संभव है ।

87. आलस्य में भी प्रभु का नाम लेने का क्या फल है ?

आलस्य करके भी जो प्रभु का नाम ले लेता है तो भी वह नाम उस जीव का उद्धार कर देता है । जैसे धरती में बीज को उल्टा या सुलटा डाले पर हवा और पानी मिलाने पर वह ऊग ही जाता है वैसे ही प्रभु का नाम भाव, अभाव, आलस्य में कैसे भी लिया जाए वह निश्चित कल्याण और मंगल करके ही रहता है ।

86. अंतिम समय भी प्रभु का नाम लेने से क्या होता है ?

व्यक्ति अपनी अंतिम सांस में भी अगर प्रभु का नाम ले लेता है तो भी उसे सभी पापों से तत्काल मुक्ति मिल जाती है बस शर्त यह है कि अंतिम सांस में प्रभु के नाम का उच्चारण हो जाए । यह तभी संभव होता है जब इसका निरंतर अभ्यास जीवनकाल से ही किया जाए ।

85. कलियुग का सबसे बड़ा गुण क्या है ?

कलियुग का सबसे बड़ा गुण यह है कि कलियुग में प्रभु का नाम ही सबसे बड़ा आधार है । राजा श्री परीक्षितजी ने कलियुग के बहुत दोष देखे पर प्रभु प्राप्ति के साधन में कलियुग को बहुत अनुकूल पाया, इस कारण उन्‍होंने कलियुग को रहने के स्थान दे दि या । राजा श्री परीक्षितजी ने देखा कि आने वाले समय में कठिन साधन होना संभव नहीं है और कलियुग में केवल प्रभु नाम जप से ही वह सब कुछ मिल जाता है जो अन्य युगों में कठिन साधनों से भी नहीं मिलता था ।   

84. प्रभु की कृपा कब होती है ?

प्रभु का नाम लें और प्रभु का काम भी करें तो प्रभु की दोगुनी कृपा होती है । नाम जप करने वाले पर प्रभु की निश्चित कृपा और दया होती है, ऐसा सभी शास्त्रों, ऋषियों, संतों और भक्तों का एकमत है । इसलिए ही प्रभु नाम जप को कलियुग का प्रधान साधन माना गया है । नाम जप से बड़ा और सरल साधन कलियुग में कोई नहीं है ।      

83. जिनकी जिह्वा प्रभु का नाम नहीं लेती उनका क्या हश्र होता है ?

जिनकी जिह्वा प्रभु का नाम नहीं लेती , जिनका चित्त प्रभु के श्रीकमलचरणों का स्मरण नहीं करता , जिनका सिर प्रभु के श्रीकमलचरणों में नहीं झुकता उन्हें नर्क में जाना पड़ता है । ऐसा प्रभु श्री यमराजजी ने अपने यमदूतों से कहा है । नाम जप की इतनी महिमा है कि वह हमें नर्क जाने से बचा ले ता है । जो नाम जप नहीं करता उन्हें मृ त्यु बेला में यमदूत लेने आते हैं और जो नाम जप करता है उ न्हें लेने प्रभु के पार्षद आते हैं ।

82. क्या प्रभु के नाम में मंत्रों जैसी शक्ति होती है ?

भक्तों द्वारा प्रभु को दिया गया नाम किसी भी मंत्र से कम नहीं होता । भक्तों का दिया हर नाम प्रभु स्वीकारते हैं । इसके अलावा प्रभु की हर श्रीलीला में प्रभु को नया नाम मिलता है । प्रभु से सभी नाम समान प्रभाव वाले हैं और समान शक्ति वाले हैं और उनकी क्षमता किसी भी मंत्र से कम नहीं बल्कि बढ़कर ही है । इसलिए प्रभु नाम जप श्रेष्‍ठ है ।

81. राजा श्री जनकजी पर नाम का क्या प्रभाव हुआ ?

राजा श्री जनकजी निर्गुण ब्रह्म को मानते थे । उन्हें रूप और नाम में आसक्ति नहीं थी पर जैसे ही उन्होंने प्रभु श्री रामजी को देखा और प्रभु का नाम "श्रीराम" सुना तो सुनते ही और प्रभु के रूप को देखते ही और प्रभु का अति मीठा नाम सुनते ही वे उसमें उलझ गए । निर्गुण से पल भर में सगुण बन गए ।

80. प्रभु से क्या मांगना चाहिए ?

प्रभु के श्रीकमलचरणों का दर्शन करना हमारी आदत बन जाए , हमारी वाणी को सदैव प्रभु का नाम लेने की वृत्ति हो , हमारे हाथों को सदैव प्रभु की सेवा करने की आदत लगे । प्रभु से हमें यही मांगना चाहिए कि प्रभु इतनी कृपा करें कि हमारा हृदय प्रभु प्रेम के लिए और हमारा शरीर प्रभु सेवा के लिए सदैव प्रस्तुत होता रहे । विशेष रूप से प्रभु नाम जप जीवन में होता रहे यही प्रभु से मांगना चाहिए ।

79. भगवती यशोदा माता ने प्रभु से क्या प्रार्थना की थी ?

भगवती यशोदा माता ने प्रभु से कहा कि प्रभु उन्हें अंतर्मन में दर्शन देते रहें और प्रभु का नाम लेने की शक्ति उनमें बनी रहें और वे अंतर्मन में प्रभु के रूप को निहारती रहें और इसी तरह एक दिन वे प्रभु में लीन हो जाएं । यही भगवती यशोदा माता की प्रभु से पहली और अंतिम प्रार्थना थी कि अंतिम समय प्रभु का नाम लेने की शक्ति उनमें बनी रहें ।

78. नाम जप प्रभु को कितना प्यारा लगता है ?

श्रीगोपीजन के मुँह से अपना नाम सुनकर प्रभु को जो आनंद आता था वह श्रीवेद मंत्र में अपनी स्तुति सुनकर भी प्रभु को नहीं आता था । यह बात प्रभु ने स्वयं श्रीगोपीजन को कही । इससे सूत्र निकलता है कि भक्तों के मुँह से प्रभु को अपना नाम उच्चारण सबसे प्यारा लगता है ।

77. श्री सुदामाजी ने नाम जप का वरदान प्रभु से कब मांगा ?

प्रभु ने श्री सुदामाजी को जो सुदामापुरी का वैभव दिया उसे देखकर श्री सुदामाजी ने प्रभु से दो वरदान मांगे । पहला वरदान कि संपत्ति के बीच रहकर भी वे प्रभु को कभी भी नहीं भूले एवं संपत्ति प्रभु भक्ति में व्यवधान नहीं बने । दूसरा वरदान कि उनसे जन्मों-जन्मों तक निरंतर प्रभु का नाम जप और स्मरण होता रहे । श्री सुदामाजी ने कहा कि यह दोनों वरदान प्रभु देते हैं तो ही वे संपत्ति स्वीकार करेंगे अन्यथा उसे प्रभु को लौटा देंगे ।

76. नाम जप क्या-क्या करता है ?

हमारी समस्त इच्छाएं पूरी हो जाएं और हमें कोई दुःख जीवन में नहीं देखना पड़े , यह दोनों बातें किसी के भी जीवन में कभी नहीं होती क्योंकि संसार में सदैव अतृप्ति है और संसार का दूसरा नाम ही दुःखालय है । कलियुग में केवल नाम जप में सामर्थ्य है कि वह हमारी सात्विक इच्छा ओं को पूरी करता है, दुःख से हमारी रक्षा करता है और हमें तृप्ति प्रदान करता है ।

75. नाम जप से क्या होता है ?

अपने मन को पूर्ण पवित्र करके मनरूपी श्रीगंगाजी को प्रभुरूपी महासागर में मिलाने के साधन का नाम “नाम जप” ही है । नाम जप से मन के मैल धुलते हैं और मन पवित्र होता है, विकार मन से निकलकर भागते हैं । निर्मल मन से ही प्रभु मिलन संभव होता है जिसको करने में नाम जप के अलावा अन्य कोई भी साधन कलियुग में काम नहीं आता है ।

74. कलियुग की भक्ति क्या है ?

प्रभु के लिए अत्यंत बढ़ती हुई नाम जप की प्यास का नाम ही कलियुग में भक्ति है । कलियुग में नाम जप भक्ति का मुख्य आधार है । अन्य युगों में जो कठिन-कठिन   साधनों से संभव होता था वह कलियुग में केवल और केवल नाम जप से संभव हो जाता है ।

73. नाम जप क्या भक्तों का मुख्य आधार होता है ?

भक्तों के लिए प्रभु का नाम और प्रभु की श्रीलीला ही जीवन धारण करने के दो मुख्य आधार बन जाते हैं । सारे बृजवासियों ने प्रभु के जाने के बाद यही किया । वे प्रभु का नाम लेते रहे और प्रभु की श्रीलीलाओं का गान करते रहे । इसी से उनका प्रेम प्रभु में दिन-पर-दिन बढ़ता ही चला गया और उनका प्रभु प्रेम पराकाष्‍ठा तक पहुँच गया ।  

72. नाम जप करते समय मन को कहाँ लगाना चाहिए ?

नाम जप करते समय अपने मन से प्रभु के नाम , रूप , गुण , लीला और धाम - इन पांचों में से किसी का भी चिंतन करना चाहिए । नाम जप के समय अपने मन को इन पांचों में किसी के बीच में ही घूमने देना चाहिए यानी इन पांचों में किसी का भी आलंबन लेना चाहिए तभी हमारा नाम जप में मन लगेगा और वह सफल होगा ।

71. नाम जप के समय क्या सावधानी रखनी चाहिए ?

हमें देखना चाहिए कि हमारा मुँह प्रभु का नाम लेने में चल रहा है , हाथों में माला चल रही है पर मन कहीं और चला जाता है । हमें इस मन को ही खींचकर प्रभु के चिंतन में लगाना चाहिए तभी नाम जप की सफलता है । नाम जप के समय हमारा मन भी प्रभु चिंतन में लगे यह सावधानी हमें रखनी चाहिए ।

70. मन से प्रभु के पास पहुँचने का साधन क्या है ?

मन से प्रभु के पास पहुँचने का साधन नाम जप ही है । सभी शास्त्र, ऋषि, संत और भक्त एकमत हैं कि कलियुग में केवल और केवल प्रभु का नाम जप ही हमें प्रभु तक पहुँचाने में सक्षम है । अन्य कोई भी साधन कलियुग में उतना सफल नहीं होता जितना नाम जप होता है ।

69. कलियुग में भक्ति के सर्वोच्च साधन क्या हैं ?

प्रभु का नाम स्मरण और प्रभु की श्रीलीलाओं का चिंतन कलियुग में भक्ति के सर्वोच्च साधन हैं । हर युग के प्रभु प्राप्ति के साधन अलग-अलग होते हैं । कलियुग में दोष-ही-दोष हैं पर सबसे बड़ी बात जो कलियुग में है वह यह कि प्रभु प्राप्ति का साधन बहुत ही सरल हैं जो नाम जप और उस के साथ प्रभु का चिंतन है ।

68. अंत में जीवन में क्या करना पड़ेगा ?

अंत में प्रभु का ही नाम लेना पड़ेगा , प्रभु के बारे में ही श्रवण करना पड़ेगा और प्रभु प्रभु के माधुर्य रूप में ही अपने चित्त को लगाना पड़ेगा । तभी हमारा अंत सफल होगा और हम प्रभु के धाम जाएगे, नहीं तो हमें चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करते रहना पड़ेगा । ऐसा करे बिना हमारा जन्‍म-मरण का चक्‍कर छूटने वाला नहीं है ।

67. नाम हमें कलियुग में कहाँ तक पहुँचा सकता है ?

नाम जप हमें कलियुग में भाव समाधि तक पहुँचा सकता है । परमात्मा रूपी सागर में लीन होने का नाम ही भाव समाधि है । नाम हमें परमात्मा रूपी सागर में लीन कर देता है । यह सामर्थ्‍य कलियुग में केवल नाम रूपी साधन में ही है ।

66. भक्ति भाव में ऊपर चढ़ने की सीढ़ियां क्या हैं ?

नाम जप , नाम कीर्तन यह सब प्रभु के लिए भक्ति भाव में ऊपर चढ़ने की सीढ़ियां हैं । जितना-जितना हम इन सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते जाएगे उतनी-उतनी हमारे भक्ति भाव में वृद्धि होती चली जाएगी । नाम जप और नाम कीर्तन से भक्तों और संतों ने कलियुग में भक्ति की बुलंदी को पाया है ।